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Tuesday, January 17, 2023

কবিতাঃ दया (3)

दयाल! कब तक करू इंतेजर!?
कब तक देखू सपना!?
जिंदेगी बित याई पल पल मे
कब तक रांहू अकेला बहार!?
कब कब तुम होगा मेरा आपना!
दयाल! दया करो; दया करो दयाल!
तुम कहां हो? मेरे पीछे भयाल!
कहां रहो मेरे जिंदेगी से दुर?
मैं अकेला; डर से बचाओ,
बचाओ मुझे दयाल!
बिनती है ये मेरी; मैं हू मजबूर
यह मेरी प्रार्थना है; मैं त मजबूर.
---------प्रबी.
(লেখা ১৮ই জানুয়ারী'২০২২)

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